उर्दू के सर्वश्रेष्ठ मुख़्तसर उद्धरण
उर्दू शायरों और अदीबों
के मुख़्तसर अक़्वाल व उद्धरण का ये संग्रह आपकी ज़िंदगी में फ़िक्र और सोच की नई राहें खोलने और नई समतों की तरफ़ रहनुमाई में मदद करेगा। हमने इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर कहे गए, लिखे गए तमाम अच्छे और मशहूर मुख़्तसर कथन शामिल करने की कोशिश की है।







हर औरत वेश्या नहीं होती लेकिन हर वेश्या औरत होती है। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए।
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ज़बान बनाई नहीं जाती, ख़ुद बनती है और ना इन्सानी कोशिशें किसी ज़बान को फ़ना कर सकती हैं।
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हर दुख, हर अज़ाब के बाद ज़िंदगी आदमी पर अपना एक राज़ खोल देती है।
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हर हसीन चीज़ इन्सान के दिल में अपनी वक़्अत पैदा कर देती है। ख़्वाह इन्सान ग़ैर-तरबियत-याफ़्ता ही क्यों ना हो?






क़ौमों को जंगें तबाह नहीं करतीं। कौमें उस वक़्त तबाह होती हैं, जब जंग के मक़ासिद बदल जाते हैं।



आज का लिखने वाला ग़ालिब और मीर नहीं बन सकता। वो शायराना अज़्मत और मक़्बूलियत उसका मुक़द्दर नहीं है। इसलिए कि वह एक बहरे, गूँगे, अंधे मुआशरे में पैदा हुआ है।





सोज़-ओ-गुदाज़ में जब पुख़्तगी आ जाती है तो ग़म, ग़म नहीं रहता बल्कि एक रुहानी संजीदगी में बदल जाता है।




ताज महल उसी बावर्ची के ज़माने में तैयार हो सकता था जो एक चने से साठ खाने तैयार कर सकता था।



रिश्तों की तलाश एक दर्द भरा अमल है। मगर हमारे ज़माने में शायद वो ज़्यादा ही पेचीदा और दर्द भरा हो गया है।





अगर ये बात ठीक है कि मेहमान का दर्जा भगवान का है तो मैं बड़ी नम्रता से आपके सामने हाथ जोड़ कर कहूँगा कि मुझे भगवान से भी नफ़रत है।


हर मतरूक (अप्रचलित) लफ़्ज़ एक गुमशुदा शहर है और हर मतरूक उस्लूब-ए-बयान (शैली) एक छोड़ा हुआ इलाक़ा।


अलिफ़ लैला को बस यूँ समझ लीजिए कि सारे अरबों ने या एक पूरी तहज़ीब ने उसे तस्नीफ़ किया है।

जो दरवाज़े मआशी कश्मकश ने एक दफ़ा खोल दिए हों, बहुत मुश्किल से बंद किए जा सकते हैं।
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अस्ल में हमारे यहाँ मौलवियों और अदीबों का ज़हनी इर्तिक़ा (बौद्धिक विकास) एक ही ख़ुतूत पर हुआ है।

जम्हूरियत... सरमाया-दारी का वह ख़ुशनुमा हथियार है, जो मज़दूर को कभी सिर नहीं उभारने देता।

किसी क़ौम को अहमक़ बनाना हो तो उस क़ौम के बच्चों को आसान और सहज लफ़्ज़ों के बदले जबड़ा तोड़ लफ़्ज़ घुँटवा दीजिए। सब बच्चे अहमक़ हो जाएंगे।