aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تلی"
मीर तक़ी मीर
1723 - 1810
शायर
त्रिपुरारि
born.1986
तौक़ीर तक़ी
मनमोहन तल्ख़
1931 - 2001
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
1766 - 1855
यूसुफ़ तक़ी
born.1943
आग़ा मोहम्मद तक़ी ख़ान तरक़्क़ी
born.1740
मुफ़ती मोहम्मद तक़ी उसमानी
लेखक
नूर तक़ी नूर
born.1919
तक़ी आबिदी
born.1952
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी तरक़्क़ी
तिलक राज पारस
सय्यद मोहम्मद तक़ी
1917 - 1999
तुलसी दास
1527 - 1643
मीर तक़ी ख़याल
वो मिले तो ये पूछना है मुझेअब भी हूँ मैं तिरी अमान में क्या
जिस समाज में रात दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से कुछ बहुत अच्छी न थी और किसानों के मुक़ाबले में वो लोग जो किसानों की कमज़ोरियों से फ़ायदा उठाना जानते थे, कहीं ज़्यादा फ़ारिग़-उल-बाल थे, वहाँ इस क़िस्म की ज़हनियत का पैदा हो जाना कोई तअ'ज्जुब की...
मगर इम्तियाज़ी फुफ्फो भी इन पाँच पांडवों पर सौ कौरवों से भारी पड़तीं। उनका सबसे ख़तरनाक हर्बा उनकी चिनचिनाती हुई बरमे की नोक जैसी आवाज़ थी। बोलना जो शुरू' करतीं तो ऐसा लगता जैसे मशीनगन की गोलियाँ एक कान से घुसती हैं और दूसरे कान से ज़न से निकल जाती...
तुली घटा के तले भीगे भीगे पत्तों सेहरी हरी कई चिंगारियाँ सी फूट पड़ीं
शादी की रात बिल्कुल वह न हुआ जो मदन ने सोचा था। जब चकली भाभी ने फुसला कर मदन को बीच वाले कमरे में धकेल दिया तो इंदू सामने शाल में लिपटी हुई अंधेरे का भाग बनी जा रही थी। बाहर चकली भाभी और दरियाबाद वाली फूफी और दूसरी औरतों...
तरक़्क़ीपसंद का दौर वो दौर था, जब सारे अदीब- शायर हमारे समाज को बेहतर बनाने की कोशिश में नग़मे बुन रहे थे | यहाँ उस समय के चंद शायर की चंद ग़ज़लें दी जा रही हैं |
मीर तक़ी ' मीर ' के समकालीन अग्रणी शायर जिन्होंने भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर नज्में लिखीं। होली , दीवाली , श्रीकृष्ण पर नज़्मों के लिए मशहूर .
मीर तक़ी मीर 18 वीं सदी के आधुनिक उर्दू शायर थे। उर्दू भाषा को बनाने और सजाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है। ख़ुदा-ए-सुख़न के रूप में प्रख्यात, मीर ने अपने बारे में कहा था 'मीर' दरिया है सुने शेर ज़बानी उसकी अल्लाह अल्लाह रे तबीअत की रवानी उसकी। रेख़्ता उनके के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर आपके सामने पेश कर रहा है। इन शेरों का चुनाव आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी मीर के कई अच्छे शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स में आपके पसंदीदा शेर का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
तिल्लीتلی
spleen
तलीتلی
weighed
तल्लीتلی
pupil
तुलीتلی
weighed, balanced, poised
दीवान-ए-मीर
दीवान
Rumuz-e-Shayari
शायरी तन्क़ीद
इंतिख़ाब-ए-मीर
संकलन
Nikle Teri Talash Mein
मुस्तनसिर हुसैन तारड़
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Meer Taqi Meer
ख़्वाजा अहमद फ़ारूक़ी
Deewan-e-Meer
मीर : ग़ज़लों के बादशाह
Apna Gareban Chaak
जावेद इक़बाल
आत्मकथा
Charagh Tale
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
लेख
एक थी सारा
अमृता प्रीतम
महिलाओं द्वारा अनुदित
अमीर हसन नूरानी
Zikr-e-Meer
Meer Ki Aap Beeti
Fiqh-e-Islami Ka Tareekhi Pas-Manzar
मोहम्मद तक़ी अमीनी
इस्लामियात
कुल्लियात-ए-मीर
कुल्लियात
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो गुफ़्तुगू की चंदाँ ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़-अंदोज़ हो सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने ख़्यालात में ग़र्क़...
सुबह हुई तो उसने देखा कि वो सोफे की बजाय अंदर अपने पलंग पर है। उसने हाफ़िज़े पर ज़ोर दिया, “मैं रात कब आया यहां... क्या मैंने खाना खाया था?” किफ़ायत को कोई जवाब न मिला। सामने वाला पलंग ख़ाली था। उसने ज़ोर से बशीर को आवाज़ दी। वो भागा...
मसऊद ये जानने के लिए बेताब था कि वो हज़रत कौन थे? “भई मुजीब, तुम्हारी हर बात निराली होती है। तुम बताते क्यों नहीं हो कि वो कौन आदमी था जिसका ज़िक्र तुमने अचानक छेड़ दिया?” मुजीब तबअ’न ख़ामोशी पसंद था। उसके दोस्त-अहबाब हमेशा उसकी तबीयत से नालां रहते, लेकिन...
नपी-तुली सी मोहब्बत लगा बँधा सा करमनिभा रहे हो तअ'ल्लुक़ बड़े हिसाब के साथ
ऐसा लगा जैसे वो मुद्दतों से मुझे मुर्दा तसव्वुर कर चुकी है और अब मेरा भूत उसके सामने खड़ा है। उसकी आँखों में एक लहज़े के लिए जो दहशत मैंने देखी, उसकी याद ने मुझे बावला कर दिया है। मैं तो सोच-सोच के दीवानी हो जाऊँगी। ये लड़की (उसका नाम...
भले दिनों की बात हैभली सी एक शक्ल थी
“उस के मुतअल्लिक़ मैं कुछ नहीं कह सकता। उसको अल्लाह के हवाले कर के ख़ुद बाहर निकलना चाहिए।” ऊपर चारपाई पर दो चादरें पड़ी हुई थीं। ख़ानसाहब ने उनको गांठ दे कर रस्सा सा बनाया और मज़बूती से एक कुंडे के साथ बांध कर दूसरी तरफ़ लटका दिया। नीचे लांड्री...
सरीता की माँ को बहुत ग़ुस्सा आरहा था। जब वो नीचे उतरी तो सीढ़ियों के पास राम दई बैठी बीड़ियों के पत्ते काट रही थी। उससे सरीता की माँ ने पूछा, “तूने सरीता को कहीं देखा है। जाने कहाँ मर गई है, बस आज मुझे मिल जाये वो चार चोट...
ये तो हुज़ूर मैंने भी आज़माया है कि हिन्दुस्तानी लोग दिन में दोबार बल्कि अक्सर हालतों में सिर्फ़ एक-बार खाना खाते हैं। लेकिन इस क़दर खाते हैं कि हम मग़रिबी लोग दिन में पाँच बार भी इस क़दर नहीं खा सकते। मोसियो झ़ां झां त्रेप का ख़्याल है कि बंगाल...
बासित बिल्कुल रज़ामंद नहीं था, लेकिन माँ के सामने उसकी कोई पेश न चली। अव्वल अव्वल तो उसको इतनी जल्दी शादी करने की कोई ख़्वाहिश नहीं थी, इसके अलावा वो लड़की भी उसे पसंद नहीं थी जिससे उसकी माँ उसकी शादी करने पर तुली हुई थी। वो बहुत देर तक...
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