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ग़ज़ल
जवाब इस बात का उस शोख़ को क्या दे सके कोई
जो दिल ले कर कहे कम-बख़्त तू किस दिल से मिलता है
दाग़ देहलवी
नज़्म
परछाइयाँ
बस्ती के सजीले शोख़ जवाँ बन बन के सिपाही जाने लगे
जिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किसी को उदास देख कर
हर एक घर में है अफ़्लास और भूक का शोर
हर एक सम्त ये इंसानियत की आह-ओ-बुका