शौकत परदेसी
ग़ज़ल 16
नज़्म 16
अशआर 34
ऐ इंक़लाब-ए-नौ तिरी रफ़्तार देख कर
ख़ुद हम भी सोचते हैं कि अब तक कहाँ रहे
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere