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शेर
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
मिलाते हो उसी को ख़ाक में जो दिल से मिलता है
मिरी जाँ चाहने वाला बड़ी मुश्किल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
मैं तो जब जानूँ कि भर दे साग़र-ए-हर-ख़ास-ओ-आम
यूँ तो जो आया वही पीर-ए-मुग़ाँ बनता गया