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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
नज़्म
झोंपड़ा
इस में ही दुश्मन इस में ही अपने बेगाने हैं
शा-झोंपड़ा भी अपने इसी में नमाने हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रात शहर और उस के बच्चे
सर्द मैदानों पे शबनम सख़्त
सुकड़ी शा-राहों मुंजमिद गलियों पे
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
नज़्म
जगमगा उट्ठा है रंग मंच
अब जब शाम हो गई है तो शराब पीने का मन होता है
मेरे दाग़-ए-दिल में एक चराग़ ऐसा भी है