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ग़ज़ल
जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर
क्या ही पछताता था मैं क़ातिल का दामाँ छोड़ कर
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
नज़्म
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ
क्यूँ न लीडर बन के सारी क़ौम को बहकाऊँ मैं
जब नहीं धंदा तो चंदा ही करूँ और खाऊँ मैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
ग़ज़ल
ये और बात कि दौलत है मेरे पास मगर
मैं भीक माँग के खाऊँ किसी के बाप का क्या