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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याद
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
उसे तुम फ़ोन करते और ख़त लिखते रहे होगे
न जाने तुम ने कितनी कम ग़लत उर्दू लिखी होगी
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से