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ग़ज़ल
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सलीम कौसर
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नज़्म
इतना मालूम है!
अपने बिस्तर पे बहुत देर से मैं नीम-दराज़
सोचती थी कि वो इस वक़्त कहाँ पर होगा
परवीन शाकिर
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे हातों की शम्ओं की हसरत में हम
नीम-तारीक राहों में मारे गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुहासरा
मिरा क़लम नहीं उस दुज़द-ए-नीम-शब का रफ़ीक़
जो बे-चराग़ घरों पर कमंद उछालता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तारिक़ की दुआ
जिन्हें तू ने बख़्शा है ज़ौक़-ए-ख़ुदाई
दो-नीम उन की ठोकर से सहरा ओ दरिया