चुनिंदा दोहे
दोहा हिन्दी, उर्दू शायरी
की मुमताज़ और मक़बूल सिन्फ़-ए- सुख़न है जो ज़माना-ए-क़दीम से ता-हाल एतबार रखती है। दोहा हिन्दी शायरी की सिन्फ़ है जो अब उर्दू में भी एक शेअरी रिवायत के तौर पर मुस्तहकम हो चुकी है। यहाँ कुछ सब से चुनिंदा दोहों को पेश किया जा रहा है कि आप इस ख़ूबसूरत विधा को पढ़ने का सफ़र आग़ाज़ कर सकें।
दिया बुझा फिर जल जाए और रुत भी पल्टा खाए
फिर जो हाथ से जाए समय वो कभी न लौट के आए
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