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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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जन्नत पर शेर

जन्नत का तसव्वुर हज़ारों

साल पुराना है इन्सान की कल्पना की उड़ान जो कुछ अच्छा देख सकती है और अपने दामन में समेटना चाहती है वह सब कुछ जन्नत में मौजूद है। शायरों को जन्नत से एक ख़ास लगाव इस लिए भी है कि जन्नत के नज़्ज़ारे कभी-कभी महबूब की गलियों की झलक भी पेश करते हैं। जन्नत शायरी के ये नज़्ज़ारे शायद आपको भी पसंद आएः

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन

दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है

मिर्ज़ा ग़ालिब

जिस में लाखों बरस की हूरें हों

ऐसी जन्नत को क्या करे कोई

दाग़ देहलवी

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

अल्लामा इक़बाल

मैं समझता हूँ कि है जन्नत दोज़ख़ क्या चीज़

एक है वस्ल तिरा एक है फ़ुर्क़त तेरी

जलील मानिकपूरी

जन्नत मिली झूटों को अगर झूट के बदले

सच्चों को सज़ा में है जहन्नम भी गवारा

अहमद नदीम क़ासमी

गुनाहगार के दिल से बच के चल ज़ाहिद

यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है

जिगर मुरादाबादी

अपनी जन्नत मुझे दिखला सका तू वाइज़

कूचा-ए-यार में चल देख ले जन्नत मेरी

फ़ानी बदायुनी

कहते हैं जिस को जन्नत वो इक झलक है तेरी

सब वाइज़ों की बाक़ी रंगीं-बयानियाँ हैं

अल्ताफ़ हुसैन हाली

गुज़रे जो अपने यारों की सोहबत में चार दिन

ऐसा लगा बसर हुए जन्नत में चार दिन

ए जी जोश

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