अफ़ज़ल मिनहास
ग़ज़ल 18
अशआर 23
चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे
आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया
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जाने ये हिद्दत चमन को रास आए या नहीं
आग जैसी कैफ़ियत है ख़ुशबुओं की लहर में
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तुझ को सुकूँ नहीं है तो मिट्टी में डूब जा
आबाद इक जहान ज़मीं की तहों में है
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बिखरे हुए हैं दिल में मिरी ख़्वाहिशों के रंग
अब मैं भी इक सजा हुआ बाज़ार हो गया
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हवा के फूल महकने लगे मुझे पा कर
मैं पहली बार हँसा ज़ख़्म को छुपाए हुए
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