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बेइंतिहा लोकप्रिय शायर/अपनी रूमानी और विरोधी -कविता के लिए प्रसिद्ध

बेइंतिहा लोकप्रिय शायर/अपनी रूमानी और विरोधी -कविता के लिए प्रसिद्ध

अहमद फ़राज़ की टॉप 20 शायरी

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए

फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम

कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम

तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'

दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है

और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे

तू बहुत देर से मिला है मुझे

आँख से दूर हो दिल से उतर जाएगा

वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

क्यूँ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिर

चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए

हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा

कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे

और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे

माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया

दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है

जो किसी और का होने दे अपना रक्खे

बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'

क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम

ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम

मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल चाहने पर भी

तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है

अब दिल की तमन्ना है तो काश यही हो

आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो

नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की

उम्र भर कौन निभाता है तअल्लुक़ इतना

मिरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 2-3-4 December 2022 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate, New Delhi

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