बंदगी शायरी
बंदगी यूँ तो ख़ुदा के आगे समर्पण का नाम है लेकिन ख़ुदा की इस दुनिया में बंदगी के कई और क़िस्से प्रचालित हैं। इन्सान इसी बंदगी में अस्तित्व और स्वाभिमान के साथ जीने के लिए नित नए तरीक़े ढूंढता है। शायरों ने इस सिलसिले में बहुत सारे अशआर क़लमबन्द किए हैं। पेश है ऐसी ही बंदगी शायरी की एक झलकः
दिल है क़दमों पर किसी के सर झुका हो या न हो
बंदगी तो अपनी फ़ितरत है ख़ुदा हो या न हो
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टैग : वैलेंटाइन डे
रहने दे अपनी बंदगी ज़ाहिद
बे-मोहब्बत ख़ुदा नहीं मिलता
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मिरा भला न हुआ
what divinity was it that Nimrod once proclaimed?
Worship was no use to me, it did not compensate
तू मेरे सज्दों की लाज रख ले शुऊर-ए-सज्दा नहीं है मुझ को
ये सर तिरे आस्ताँ से पहले किसी के आगे झुका नहीं है
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं
मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर
बंदगी का मिरी अंदाज़ जुदा होता है
मेरा काबा मेरे सज्दों में छुपा होता है
the aspect of my piety is truly an exception
godhead's altar is contained in my genuflection
दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गए
सिदक़-ओ-सफ़ा-ए-क़ल्ब से महरूम है हयात
करते हैं बंदगी भी जहन्नम के डर से हम
बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम
उल्टे फिर आए दर-ए-काबा अगर वा न हुआ