1935 | पंजाब, पाकिस्तान
आधुनिक ग़ज़ल के लोकप्रिय शायर, अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर रहे
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एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी
एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
कुछ दिए ऐसे जले हर-सू अंधेरा हो गया
कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से
जो खिल के भी न समझ पाए ज़िंदगी क्या है
Aab-e-Sarab
1992
Aaghosh-e-Khayal
1964
Azkar
1987
Dasht-e-Sada
1976
Izhar
1996
जिस्मों का बनबास
Tikon Ka Karb
1973
हर इक ने देखा मुझे अपनी अपनी नज़रों से कोई तो मेरी नज़र से भी देखता मुझ को
एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी एक हम हैं कि जिन्हें ग़म ने उभरने न दिया
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