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फ़रह शाहिद

ग़ज़ल 5

 

नज़्म 3

 

अशआर 12

पूछो ज़रा ये चाँद से कैसे सहर हुई

इतनी तवील रात भी कैसे बसर हुई

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कुछ इस तरह क़रीब वो आया मिरे लिए

उस की तवज्जोह प्यार में चाहत का घर हुई

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तक़्सीम फिर हुई है विरासत कुछ इस तरह

इक माँ ज़मीं पे देखिए फिर दर-ब-दर हुई

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वो यूँ तो लगता है सब के जैसा

मगर जुदा कुछ जनाब में है

मैं उस की अंखों में ऐसे डूबी

कि डूबा कोई चनाब में है

पुस्तकें 1

 

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