फ़े सीन एजाज़
ग़ज़ल 28
नज़्म 11
अशआर 15
इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी
वर्ना दुनिया जान की दुश्मन कब होती है
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मिल रही है मुझे ना-कर्दा गुनाहों की सज़ा
मेरे मालिक मिरे सज्दे मुझे वापस कर दे
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हज़ारों साल की थी आग मुझ में
रगड़ने तक मैं इक पत्थर रहा था
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