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मीर अली औसत रशक

1799 - 1867 | लखनऊ, भारत

मीर अली औसत रशक

ग़ज़ल 19

अशआर 3

हद से गुज़रा जब इंतिज़ार तिरा

मौत का हम ने इंतिज़ार किया

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सुना रहा हूँ नकीरैन को फ़साना-ए-हिज्र

सवाल उन के जुदा हैं मिरे जवाब जुदा

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अब तो बातें भी हो गईं मौक़ूफ़

अरिनी है लन-तरानी है

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