मीर कल्लू अर्श
ग़ज़ल 32
अशआर 10
क्या दिया बोसा लब-ए-शीरीं का हो कर तुर्श-रू
मुँह हुआ मीठा तो क्या दिल अपना खट्टा हो गया
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नज़र किसी को वो मू-ए-कमर नहीं आता
ब-रंग-ए-तार-ए-नज़र है नज़र नहीं आता
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हसरत-ए-दीद में आख़िर को दम अपना उल्टा
पर्दा-ए-चश्म न उस शोख़ ने अपना उल्टा
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