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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मोहम्मद यासिर मुस्तफ़वी

2002 | अम्बेडकर नगर, भारत

मोहम्मद यासिर मुस्तफ़वी

ग़ज़ल 6

अशआर 6

हम से बिछड़े हैं कई लोग हमारे अपने

हम ने हर 'ईद पे क़ुर्बान किया है कुछ कुछ

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उदासी अनगिनत यादें जाने कितने बिछड़े ख़्वाब

कभी देखी है यारो तुम ने वो आँखें दिसम्बर की

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हम तो शा'इर हैं हमें वस्ल की परवाह नहीं

हम तुझे अपने ख़यालात में छू लेते हैं

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अभी तो ख़ून बहा है फ़िराक़ में तेरे

अभी ये जान मिरी जाँ गँवाना बाक़ी है

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ख़ुद-कुशी करने को दरिया की तरफ़ जाता हूँ

और मिल जाता है हर रोज़ किनारे कोई

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