मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल 16
अशआर 20
आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं
कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे
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दिमाग़ दे जो ख़ुदा गुलशन-ए-मोहब्बत में
हर एक गुल से तिरे पैरहन की बू आए
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हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं
तुम ने देखा इक नज़र से दिल तुम्हारा हो गया
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