aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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ताजवर नजीबाबादी

1894 - 1951 | लाहौर, पाकिस्तान

ताजवर नजीबाबादी

ग़ज़ल 7

अशआर 9

नज़र भर के जो देख सकते हैं तुझ को

मैं उन की नज़र देखना चाहता हूँ

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उफ़ वो नज़र कि सब के लिए दिल-नवाज़ है

मेरी तरफ़ उठी तो तलवार हो गई

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ख़ुदा मुझ को तुझ से ही महरूम कर दे

जो कुछ और तेरे सिवा चाहता हूँ

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बर्दाश्त दर्द-ए-इश्क़ की दुश्वार हो गई

अब ज़िंदगी भी जान का आज़ार हो गई

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दिल के पर्दों में छुपाया है तिरे इश्क़ का राज़

ख़ल्वत-ए-दिल में भी पर्दा नज़र आता है मुझे

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