तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल 62
नज़्म 13
अशआर 20
अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते
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तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना
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दाम-ए-ग़म-ए-हयात में उलझा गई उमीद
हम ये समझ रहे थे कि एहसान कर गई
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बुरा हो उल्फ़त-ए-ख़ूबाँ का हम-नशीं हम तो
शबाब ही में बुरा अपना हाल कर बैठे
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