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ज़किया ग़ज़ल

ग़ज़ल 16

अशआर 1

मैं ने माँगी थी उजाले की फ़क़त एक किरन

तुम से ये किस ने कहा आग लगा दी जाए

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दोहा 6

कब तक जान बचाए फूल पे ओस का नन्हा क़तरा

पत्तों की भी ओट में हो तो सूरज पल पल ख़तरा

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पहले पहले प्यार की साजन पहली है बरसात

ओढ़ के लेटी याद तिरी और जाग के काटी रात

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तुम तो शान से निकले थे ले हाथ में मेरा हाथ

डर कर दुनिया वालों से क्यूँ छोड़ दिया है साथ

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जाने कितने मौसम बीते तुम लौट के आए

मन दुखियारा बिरह का मारा कब तक आस लगाए

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दम भर में हुए सूखे पत्ते काँटे और बबूल

साजन जब तक आप यहाँ थे खिले रहे सब फूल

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