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ग़ज़ल
एक मुद्दत से है लोगों को 'नईमी' की तलाश
क़स्र-ए-तन्हाई की दीवारें गिरा कर देखो
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
है तआक़ुब में 'नईमी' साया सा इक रोज़ ओ शब
दोस्त ही शायद हो कोई मुड़ के तो देखो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
शेर
मैं भी इस सफ़्हा-ए-हस्ती पे उभर सकता हूँ
रंग तो तुम मिरी तस्वीर में भर कर देखो
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
हो कर जुदा भी उस से 'नईमी' मैं जी तो लूँ
लेकिन ये डर है इस से कहीं वो ख़फ़ा न हो