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नज़्म
शिकवा
नाले बुलबुल के सुनूँ और हमा-तन गोश रहूँ
हम-नवा मैं भी कोई गुल हूँ कि ख़ामोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
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नज़्म
ज़िंदगी से डरते हो
चाक हो गया आख़िर ख़ाक हो गया आख़िर
इज़्दिहाम-ए-इंसाँ से फ़र्द की नवा आई
नून मीम राशिद
नज़्म
आवारा
और कोई हम-नवा मिल जाए ये क़िस्मत नहीं
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
शेर
शकील बदायूनी
नज़्म
एक आरज़ू
गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें