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नज़्म
हमेशा देर कर देता हूँ
उसे आवाज़ देनी हो उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं
मुनीर नियाज़ी
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शेर
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
बशीर बद्र
नज़्म
ख़ूब-सूरत मोड़
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ुदसी-उल-अस्ल है रिफ़अत पे नज़र रखती है
ख़ाक से उठती है गर्दूं पे गुज़र रखती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कभी कभी
कि तू नहीं तिरा ग़म तेरी जुस्तुजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे