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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
कोई क़ाबिल हो तो हम शान-ए-कई देते हैं
ढूँडने वालों को दुनिया भी नई देते हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक आरज़ू
गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम
और इस पर ये काली घटाओं का पहरा
गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है
ताहिर फ़राज़
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
नज़्म
मता-ए-ग़ैर
तू किसी और के दामन की कली है लेकिन
मेरी रातें तिरी ख़ुश्बू से बसी रहती हैं