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संत वाणी
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शायरी के अनुवाद
आज मैं ने अपने घर का नंबर मिटा दिया है
और गुल की पेशानी पर सब्त गुल का नाम हटा दिया है
अमृता प्रीतम
नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
इन सब के इम्तिज़ाज से पैदा हुई है तू
कितने हसीं उफ़ुक़ से हुवैदा हुई है तू
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
अज़िय्यतों में भी बख़्शी मुझे वो ने'मत-ए-सब्र
कि मेरे दिल में गिरह है न मेरे माथे पे बल
अहमद फ़राज़
नज़्म
ख़ातून-ए-मशरिक़
नेमतें सब बट चुकीं लेकिन न होना मुज़्महिल
सब को बख़्शे हैं दिमाग़ और ले तुझे देते हैं दिल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आख़िरी बोसा
मिरे होंटों पे उस के आख़िरी बोसे की लज़्ज़त सब्त है
वो उस का आख़िरी बोसा