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हास्य शायरी
वो हसीना अब ज़ईफ़ा हो चुकी तो क्या हुआ
मर्सिया है तू भी तो उस की रुबाई कर के देख
नसीम सेहरी
ग़ज़ल
इम्तियाज़ ख़ान
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हास्य शायरी
इक ज़ईफ़ा अपने बेटे से ये बोली अगले रोज़
रात कैसा शोर था क्या कोई शाएर मर गया
अतहर शाह ख़ान जैदी
ग़ज़ल
क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी
बहादुर शाह ज़फ़र
शेर
कह रहा है शोर-ए-दरिया से समुंदर का सुकूत
जिस का जितना ज़र्फ़ है उतना ही वो ख़ामोश है