1790 - 1857 | लखनऊ, भारत
लखनऊ स्कूल के प्रमुख क्लासिकी शायर / अवध के आख़री नवाब, वाजिद अली शाह के उस्ताद
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ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को
यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया
उस को भी अब मलाल है मेरे मलाल का
Intikhab-e-Deewan-e-Barq Lakhnavi
इंतिख़ाब-ए-ग़ज़लियात-ए-बर्क़
1983
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
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