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Muzaffar Warsi's Photo'

मुज़फ़्फ़र वारसी

1933 - 2011 | लाहौर, पाकिस्तान

मुज़फ़्फ़र वारसी

ग़ज़ल 39

नज़्म 3

 

अशआर 15

ख़ुद मिरी आँखों से ओझल मेरी हस्ती हो गई

आईना तो साफ़ है तस्वीर धुँदली हो गई

जभी तो उम्र से अपनी ज़ियादा लगता हूँ

बड़ा है मुझ से कई साल तजरबा मेरा

डुबोने वालों को शर्मिंदा कर चुका हूँगा

मैं डूब कर ही सही पार उतर चुका हूँगा

तू चले साथ तो आहट भी आए अपनी

दरमियाँ हम भी हों यूँ तुझे तन्हा चाहें

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पहले रग रग से मिरी ख़ून निचोड़ा उस ने

अब ये कहता है कि रंगत ही मिरी पीली है

नअत 2

 

पुस्तकें 14

वीडियो 7

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

मुज़फ़्फ़र वारसी

मुज़फ़्फ़र वारसी

मेरी जुदाइयों से वो मिल कर नहीं गया

मुज़फ़्फ़र वारसी

हाथ आँखों पे रख लेने से ख़तरा नहीं जाता

मुज़फ़्फ़र वारसी

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