aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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असरार-उल-हक़ मजाज़
1911 - 1955
शायर
एहसान दानिश
1914 - 1982
क़मर मुरादाबादी
1910 - 1987
मौलवी अब्दुल हक़
1872 - 1961
लेखक
शानुल हक़ हक़्क़ी
1917 - 2005
एहतमाम सादिक़
born.1993
अताउल हक़ क़ासमी
born.1943
कौसर मज़हरी
born.1964
सय्यदा अरशिया हक़
born.1990
कैफ़ मुरादाबादी
1907 - 1976
एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
इमरान-उल-हक़ चौहान
असरारुल हक़ असरार
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
मोहम्मद इज़हारुल हक़
born.1948
सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन मेंमिज़ाज और ही लाल ओ गुहर के देखते हैं
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आआ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्यादाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो हैलम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
सबसे प्रख्यात एवं प्रसिद्ध शायर. अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण कई साल कारावास में रहे।
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
महत्वपूर्ण प्रगतिशील शायर। उनकी कुछ ग़ज़लें ' बाज़ार ' और ' गमन ' , जैसी फिल्मों से मशहूर
क़वाइद-ए-उर्दू
भाषा
Heer Waris Shah
सय्यद वारिस शाह
शायरी
Urdu Sarf-o-Nahv
कुल्लियात-ए-मजाज़
कुल्लियात
Urdu Ki Ibtidai Nash-o-Numa Mein Sufiya-e-Karam Ka Kam
क़वाइद-ए-उर्दू
Urdu Ghazal Ki Riwayat Aur Taraqqi Pasand Ghazal
मुम्ताज़ुल हक़
ग़ज़ल तन्क़ीद
Paimana-e-Ghazal
मोहम्मद शम्सुल हक़
Urdu ki Ibtidai Nash-o-Numa mein Sufiya-e-Kiram ka Kaam
शोध / समीक्षा
Marhoom Dehli College
इतिहास
हक़ इलिया
मोहसिन नक़वी
काव्य संग्रह
Aap Musafir Aap Hi Manzil
मोमिन इक़बाल उस्मान
अशआर
Chand Ham-Asr
स्केच / ख़ाका
Akhbar-ul-Akhyar
अब्दुल हक़ मोहद्दिस देहलवी
तज़किरा
उर्दू ज़बान की क़दीम तारीख़
एैनुल हक़ फ़रीद कोटी
हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुमतुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगेया'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्तसब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
न उस को मुझ पे मान थान मुझ को उस पे ज़ोम ही
मुझ पे ही ख़त्म हुआ सिलसिला-ए-नौहागरीइस क़दर गर्दिश-ए-अय्याम पे रोना आया
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात कर नहीं आती
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगामगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
तुझ से कुछ मिलते ही वो बेबाक हो जाना मिराऔर तिरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है
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