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ग़ज़ल
तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे अबरू तिरे लब
अब भी मशहूर हैं दुनिया में मिसालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तसव्वुर
नशीली आँखें, रसीली चितवन, दराज़ पलकें, महीन अबरू
तमाम शोख़ी, तमाम बिजली, तमाम मस्ती, तमाम जादू
कैफ़ी आज़मी
ग़ज़ल
ताक़-ए-अबरू में सनम के क्या ख़ुदाई रह गई
अब तो पूजेंगे उसी काफ़िर के बुत-ख़ाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
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विषय
अबरू
अबरू शायरी
विषय
अब्र
अब्र शायरी
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मर्सिया
मर्दुम को इशारा है ये अबरुओं का जबीं पर
हैं दो मह-ए-नौ जलवा-नुमा चर्ख़-ए-बरीं पर