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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
चाँद कहता था नहीं अहल-ए-ज़मीं है कोई
कहकशाँ कहती थी पोशीदा यहीं है कोई
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सच जहाँ पा-बस्ता मुल्ज़िम के कटहरे में मिले
उस अदालत में सुनेगा अद्ल की तफ़्सीर कौन
परवीन शाकिर
मर्सिया
अदल आगे बढ़ा हुक्म ये देता है क़ज़ा को
हाँ बांध ले ज़ुल्म-ओ-सितम-ओ-जोर-ओ-जफ़ा को
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
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नज़्म
तीन आवाज़ें
मर्ग-ए-अम्बोह का त्यौहार मनाओ लोगो
अदम-आबाद को आबाद किया है मैं ने