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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क्या हुई तक़्सीर हम से तू बता दे ऐ 'नज़ीर'
ताकि शादी-मर्ग समझें ऐसे मर जाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मौलाना
बहुत मैं ने सुनी है आप की तक़रीर मौलाना
मगर बदली नहीं अब तक मिरी तक़दीर मौलाना
हबीब जालिब
ग़ज़ल
दिल-लगी तर्क-ए-मोहब्बत नहीं तक़्सीर मुआफ़
होते होते मिरे क़ाबू में तबीअ'त होगी
लाला माधव राम जौहर
नज़्म
रामायण का एक सीन
तक़्सीर मेरी ख़ालिक़-ए-आलम बहल करे
आसान मुझ ग़रीब की मुश्किल अजल करे
चकबस्त बृज नारायण
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शेर
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
विर्सा
नौ-ए-इंसाँ के शब-ओ-रोज़ की तक़दीर नहीं
ये वतन तेरी मिरी नस्ल की जागीर नहीं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
रक़ीबाँ की न कुछ तक़्सीर साबित है न ख़ूबाँ की
मुझे नाहक़ सताता है ये इश्क़-ए-बद-गुमाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
वो जो हुए फ़िरदौस-बदर तक़्सीर थी वो आदम की मगर
मेरा अज़ाब-ए-दर-बदरी मेरी ना-कर्दा-गुनाही है