संपूर्ण
परिचय
ग़ज़ल118
नज़्म29
शेर74
हास्य3
ई-पुस्तक46
चित्र शायरी 25
ऑडियो 13
वीडियो53
क़ितआ11
रुबाई7
क़िस्सा6
गेलरी 5
दोहा3
गीत9
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल 118
नज़्म 29
अशआर 74
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
जाने क्यूँ लोग मिरे नाम से जल जाते हैं
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उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं
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दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं
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गिरते हैं समुंदर में बड़े शौक़ से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समुंदर नहीं गिरता
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हास्य 3
क़ितआ 11
रुबाई 7
क़िस्सा 6
पुस्तकें 46
चित्र शायरी 25
वीडियो 53
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