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सिराजुद्दीन ज़फ़र

1912 - 1972 | कराची, पाकिस्तान

सिराजुद्दीन ज़फ़र

ग़ज़ल 24

अशआर 4

वो तमाशा हूँ हज़ारों मिरे आईने हैं

एक आईने से मुश्किल है अयाँ हो जाऊँ

हुजूम-ए-गुल में रहे हम हज़ार दस्त दराज़

सबा-नफ़स थे किसी पर गिराँ नहीं गुज़रे

दोस्त इस ज़मान-ओ-मकाँ के अज़ाब में

दुश्मन है जो किसी को दुआ-ए-हयात दे

नुमूद उन की भी दौर-ए-सुबू में थी कल रात

अभी जो दौर-ए-तह-ए-आसमाँ नहीं गुज़रे

पुस्तकें 5

 

चित्र शायरी 1

 

वीडियो 10

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

सिराजुद्दीन ज़फ़र

इस्लाह-ए-अहल-ए-होश का यारा नहीं हमें

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मैं ने कहा कि तजज़िया-ए-जिस्म-ओ-जाँ करो

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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