संदीप गुप्ते
ग़ज़ल 9
अशआर 12
आँधियाँ आईं उठा कर ले गईं सब बस्तियाँ
मैं ने इक दिल में बनाया था मकाँ अच्छा हुआ
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तू कहाँ रहती है पूछा था किसी ने एक दिन
मैं ग़मों के साथ रहती हूँ ख़ुशी कहने लगी
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मैं तुम्हारे शहर की तहज़ीब से वाक़िफ़ न था
पत्थरों से की नहीं थी गुफ़्तुगू पहले कभी
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