अनीस अंसारी
ग़ज़ल 12
अशआर 16
तिरी महफ़िल में सब बैठे हैं आ कर
हमारा बैठना दुश्वार क्यूँ है
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बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो अगरचे मेहरबाँ है वो
अगरचे मेहरबाँ है वो बड़ा आज़ार-ए-जाँ है वो
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हर एक शख़्स तुम्हारी तरह नहीं होता
कोई किसी से मोहब्बत कहाँ करे कैसे
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हिज्र के छोटे गाँव से हम ने शहर-ए-वस्ल को हिजरत की
शहर-ए-वस्ल ने नींद उड़ा कर ख़्वाबों को पामाल किया
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हिज्र में वैसे भी आती है मुसीबत जान पर
पर रक़ीबों की अलग है ख़ंदा-कारी हाए हाए
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