फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल 44
अशआर 31
किसी लम्हे तो ख़ुद से ला-तअल्लुक़ भी रहो लोगो
मसाइल कम नहीं फिर ज़िंदगी भर सोचते रहना
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ख़बर मुझ को नहीं मैं जिस्म हूँ या कोई साया हूँ
ज़रा इस की वज़ाहत धूप की चादर पे लिख देना
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तुझे हवस हो जो मुझ को हदफ़ बनाने की
मुझे भी तीर की सूरत कमाँ में रख देना
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हर इक क़यास हक़ीक़त से दूर-तर निकला
किताब का न कोई दर्स मो'तबर निकला
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए