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मोहब्बत पर शेर

मोहब्बत पर ये शायरी

आपके लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से मोहब्बत में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें मोहब्बत के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और मोहब्बत करने वालों के बीच साझा कीजिए.

दिल में हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती

ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती

निदा फ़ाज़ली

रोज़ मिलने पे भी लगता था कि जुग बीत गए

इश्क़ में वक़्त का एहसास नहीं रहता है

अहमद मुश्ताक़

हम जानते तो इश्क़ करते किसू के साथ

ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ

मीर तक़ी मीर

तुम से मिलती-जुलती मैं आवाज़ कहाँ से लाऊँगा

ताज-महल बन जाए अगर मुम्ताज़ कहाँ से लाऊँगा

साग़र आज़मी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत का अंजाम बस इतना है

जब दिल में तमन्ना थी अब दिल ही तमन्ना है

जिगर मुरादाबादी

इधर रक़ीब मेरे मैं तुझे गले लगा लूँ

मिरा इश्क़ बे-मज़ा था तिरी दुश्मनी से पहले

कैफ़ भोपाली

अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में

कि अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैं ने

साहिर लुधियानवी

यही दो काम मोहब्बत ने दिए हैं हम को

दिल में है याद तिरी ज़िक्र है लब पर तेरा

जलील मानिकपूरी

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है

कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है

मीर तक़ी मीर

किस दर्जा दिल-शिकन थे मोहब्बत के हादसे

हम ज़िंदगी में फिर कोई अरमाँ कर सके

साहिर लुधियानवी

प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है

नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है

हस्तीमल हस्ती

देखने के लिए सारा आलम भी कम

चाहने के लिए एक चेहरा बहुत

असअ'द बदायुनी

मोहब्बत करने वाले कम होंगे

तिरी महफ़िल में लेकिन हम होंगे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो

छेड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो

अमीर मीनाई

उस मरज़ को मरज़-ए-इश्क़ कहा करते हैं

दवा होती है जिस की दुआ होती है

शफ़ीक़ रिज़वी

उस ने आँचल से निकाली मिरी गुम-गश्ता बयाज़

और चुपके से मोहब्बत का वरक़ मोड़ दिया

जावेद सबा

मैं मोहब्बत छुपाऊँ तू अदावत छुपा

यही राज़ में अब है वही राज़ में है

कलीम आजिज़

मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा

तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी

बशीर बद्र

उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं

मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक पहुँचे

शकील बदायूनी

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है

आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

शकील बदायूनी

वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बत

अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम

जौन एलिया

याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सब कुछ

भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

जमाल एहसानी

सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया जाएगा

ये आग वो है जिस को दबाया जाएगा

हमीद जालंधरी

मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम

मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है

शकील बदायूनी

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

बशीर बद्र

नाम होंटों पे तिरा आए तो राहत सी मिले

तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है

नक़्श लायलपुरी

शम-ए-शब-ताब एक रात जली

जलने वाले तमाम उम्र जले

महमूद अयाज़

जहान-ए-इश्क़ से हम सरसरी नहीं गुज़रे

ये वो जहाँ है जहाँ सरसरी नहीं कोई शय

अहमद मुश्ताक़

सुना रहा हूँ उन्हें झूट-मूट इक क़िस्सा

कि एक शख़्स मोहब्बत में कामयाब रहा

ख़लील-उर-रहमान आज़मी

किस से जा कर माँगिये दर्द-ए-मोहब्बत की दवा

चारा-गर अब ख़ुद ही बेचारे नज़र आने लगे

शकील बदायूनी

फिर खो जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में

मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी

साहिर लुधियानवी

बे-नियाज़-ए-दहर कर देता है इश्क़

बे-ज़रों को लाल-ओ-ज़र देता है इश्क़

अबुल हसनात हक़्क़ी

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में

ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा करे

क़तील शिफ़ाई

दिल में किसी के राह किए जा रहा हूँ मैं

कितना हसीं गुनाह किए जा रहा हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी

जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही

खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही

अल्लामा इक़बाल

इक मोहब्बत की ये तस्वीर है दो रंगों में

शौक़ सब मेरा है और सारी हया उस की है

जावेद अख़्तर

इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब

'आबरू' को इमाम करते हैं

आबरू शाह मुबारक

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को

क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी

तलाक़ दे तो रहे हो इताब-ओ-क़हर के साथ

मिरा शबाब भी लौटा दो मेरी महर के साथ

साजिद सजनी लखनवी

कोई फूल सा हाथ काँधे पे था

मिरे पाँव शो'लों पे जलते रहे

बशीर बद्र

ज़ियान-ए-दिल ही इस बाज़ार में सूद-ए-मोहब्बत है

यहाँ है फ़ाएदा ख़ुद को अगर नुक़सान में रख लें

इक़बाल कौसर

हुस्न को शर्मसार करना ही

इश्क़ का इंतिक़ाम होता है

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा

जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए

नासिर काज़मी

मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ

तुम तो कहते थे कि इस काम में घर लगता है

अब्बास ताबिश

हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो

ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं

क़लक़ मेरठी

किस मुँह से करें उन के तग़ाफ़ुल की शिकायत

ख़ुद हम को मोहब्बत का सबक़ याद नहीं है

हफ़ीज़ बनारसी

मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू

कौन सी चीज़ तुझे तुझ से जुदा पेश करूँ

साहिर लुधियानवी

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते

वर्ना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते

अहमद फ़राज़

आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो

बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो

अहमद फ़राज़

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी

लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे

बशीर बद्र
बोलिए