आँख शायरी
आँखें हमारे जिस्म का सिर्फ़ एक हिस्सा नहीं बल्कि हज़ारों दिलकश ख़्वाबों, शायराना ख़यालों का एक क़ीमती ख़ज़ाना भी हैं। शायरों ने महबूब की आँखों की तारीफ़ में जो कुछ लिखा और जितनी बड़ी तादाद में लिखा है वो हैरान करने वाला है। आँख शायरी ऐसे ख़ूबसूरत अशआर का एक गुलदस्ता है जिसे आप ज़रूर पसंद फ़रमाँऐं।
तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
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लोग कहते हैं कि तू अब भी ख़फ़ा है मुझ से
तेरी आँखों ने तो कुछ और कहा है मुझ से
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिन
ज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
ख़ुदा बचाए तिरी मस्त मस्त आँखों से
फ़रिश्ता हो तो बहक जाए आदमी क्या है
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना
आँखें जो उठाए तो मोहब्बत का गुमाँ हो
नज़रों को झुकाए तो शिकायत सी लगे है
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ
आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है
show me not your anger dear show me your youthful prime
the wealth that you have covered up is truly sublime
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इस क़दर रोया हूँ तेरी याद में
आईने आँखों के धुँदले हो गए
हसीं तेरी आँखें हसीं तेरे आँसू
यहीं डूब जाने को जी चाहता है
लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए
हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो
लोग नज़रों को भी पढ़ लेते हैं
अपनी आँखों को झुकाए रखना
इक हसीं आँख के इशारे पर
क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं
आँख रहज़न नहीं तो फिर क्या है
लूट लेती है क़ाफ़िला दिल का
उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
ज़ीस्त के रंज भूल जाते हैं
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
कैफ़िय्यत-ए-चश्म उस की मुझे याद है 'सौदा'
साग़र को मिरे हाथ से लीजो कि चला मैं
रात को सोना न सोना सब बराबर हो गया
तुम न आए ख़्वाब में आँखों में ख़्वाब आया तो क्या
तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं
आँख से आँख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हम-कलाम होता है
ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
आँखें ख़ुदा ने दी हैं तो देखेंगे हुस्न-ए-यार
कब तक नक़ाब रुख़ से उठाई न जाएगी
बुज़-दिली होगी चराग़ों को दिखाना आँखें
अब्र छट जाए तो सूरज से मिलाना आँखें
would be cowardice to stare down at the flame
let the clouds disperse then look upon the sun
कभी उन मद-भरी आँखों से पिया था इक जाम
आज तक होश नहीं होश नहीं होश नहीं
मैं डर रहा हूँ तुम्हारी नशीली आँखों से
कि लूट लें न किसी रोज़ कुछ पिला के मुझे
'मीर' उन नीम-बाज़ आँखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
आँखें साक़ी की जब से देखी हैं
हम से दो घूँट पी नहीं जाती
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
अभी वो आँख भी सोई नहीं है
अभी वो ख़्वाब भी जागा हुआ है
आँखें न जीने देंगी तिरी बे-वफ़ा मुझे
क्यूँ खिड़कियों से झाँक रही है क़ज़ा मुझे
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
ज़मीन तेरी ख़ुदा मोतियों से नम कर दे
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
मेरी मय-ख़्वारी अभी तक राज़ है
न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आ कर
न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है
आँखों में जो बात हो गई है
इक शरह-ए-हयात हो गई है
देखी हैं बड़े ग़ौर से मैं ने वो निगाहें
आँखों में मुरव्वत का कहीं नाम नहीं है
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
अब तक मिरी यादों से मिटाए नहीं मिटता
भीगी हुई इक शाम का मंज़र तिरी आँखें
लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
हम ने देखा है ख़्वाब आँखों से
शाम से उन के तसव्वुर का नशा था इतना
नींद आई है तो आँखों ने बुरा माना है
दिलों का ज़िक्र ही क्या है मिलें मिलें न मिलें
नज़र मिलाओ नज़र से नज़र की बात करो
उन झील सी गहरी आँखों में
इक लहर सी हर दम रहती है
जान से हो गए बदन ख़ाली
जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखा
आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा